Natasha

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लेखनी कहानी -27-Jan-2023

प्राणायाम ही कल्पवृक्ष


नारद जी एक बार किसी नगर में गए। वहाँ उन्हें पुराना मित्र मिला। वह बेचारा दुखों का मारा था। नारद जी बोले - " यहाँ व्यर्थ ही संकटों में फँसे हो। आओ, तुम्हें स्वर्ग ले चलूँ। "

मित्र खुशी से बोला - " और क्या चाहिए ! "

दोनों पहुँच गए स्वर्ग में। वहाँ सुंदर पत्तों वाला, घनी छाया देने वाला कल्पवृक्ष खड़ा था। नारद जी बोले - " तुम इस वृक्ष के नीचे बैठो, मै अंदर से मिलकर आता हूँ। "

नारद जी चले गए तो मित्र ने इधर-उधर झाँका। मीठी छाया, शीतल वायु, रमणीक स्थान में आनंद आया तो सोचा - यदि आरामकुर्सी होती तो बैठ के सुख लेता !

वह खड़ा था कल्पवृक्ष के नीचे, जहाँ जो इच्क्षा करो वही पूरी हो जाती है। आरामकुर्सी चाही थी, सो आ गई। बैठ गया उसपर। तब सोचा - यदि पलँग होता तो दो घड़ी लेट ही जाता ! सोचते ही पलँग आ गया। उसपर लेटते ही सोचा - घर होता तो पत्नी से कहता कि मेरी टाँगे दबा दे, मेरा सिर ही सहला दे ! सोचते ही कई अप्सराएँ आ गईं ! कोई पाँव दबाने लगी, कोई सिर सहलाने लगी, कोई गीत गाने लगी, कोई ठुमके लगाने लगी। उस व्यक्ति ने सोचा - यदि इन अप्सराओं के साथ पत्नी देख लेती तो झाड़ू से मेरी मरम्मत कर डालती ! सोचते ही झाड़ू लेकर पत्नी आ धमकी। लगी उसकी झाड़ू से पिटाई करने। पति पलँग से उठकर दौड़ा। आगे-आगे वह था, पीछे-पीछे झाड़ू उठाए पत्नी।

तभी नारद जी लौटे। दूर से ही यह तमाशा देखा तो उसे फटकारा - " मूर्ख ! सोचना ही था तो कोई अच्छी बात सोचते। यह क्या सोच बैठे तुम ? यह तो कल्पवृक्ष है ! "

सो मेरे भाइयों ! प्राणायाम भी कल्पवृक्ष है। इसके नीचे बैठो तो अच्छी बातें सोचना, बुरी बातें न सोचना !

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